Tantya Mama Biography in Hindi

टंट्या मामा का नाम आजकल प्रसिद्ध हुआ है जबसे मध्यप्रदेश में PESA ACT लागु हुआ है, और मप्र सरकार 4 दिसंबर को बलिदान दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है और आप सभी की जानकारी के लिए बता दूँ Tatyan भील के बारें मुमकिन है की MPPSC या अन्य किसी प्रतियोगी परीक्षा में इनसे जुड़े सवाल जरुरु पूछें जाये, इसलिए हम आपको Tatyan भील की जीवनी Tantya Mama Biography in Hindi के माध्यम से दे रहें हैं ताकि आप इसे पढ़कर पूरी जानकारी ले पाएं।

हाषिये के लोगों का इतिहास कभी लिखा ही नहीं गया । न ही कभी मुख्यधारा से उन्हें जोड़ने का ही प्रयत्न किया गया। देष पर जब भी संकट के बादल मंडराये, तब इन्हीं इन लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, लोगों में क्रांति की भावना जगाई और हँसते-हँसते फाँसी पर चढ़ गये। चूंकि पढ़े-लिखे न होने के कारण वे स्वयं अपना इतिहास नहीं लिख पाये और जिन्होंने इतिहास लिखा वे उनके साथ सच्चा न्याय नहीं कर पाये।

अगर कहीं उनका उल्लेख जरूरी था तो तथ्यों को तोड़ा, मरोड़ा गया, उनके नाम को इतना घृणित तरीके से दर्ज किया जिससे पढ़ने वाला सहज ही अनुमान लगा सके की वह घृणित व नीच जाति का है । भले ही उनके बलिदान और षौर्य गाथाओं को इतिहास में जगह न दी गई हो लेकिन लोक मानस ने लोकगीत, कथाओं और मिथकों के माध्यम से उनकी कीर्ति को संपूर्ण जगत में गुंजायमान रखा ।

ऐसे ही लोक कथाओं और मिथकों मे जीवित क्रांतिकारी पुरूष टंट्या भील है, जिसे भील होने के कारण इतिहास में जगह नहीं दी गई, लेकिन लोक में फैली उनकी कीर्ति और यष को वे रोक न पाये और जनमानस में टंट्या भील आज भी ईष्वरीय तत्त्व के रूप में विद्यमान हैं। भले ही वह एक मिथक के रूप में हो लेकिन इतिहास में दर्ज क्रांतिकारियों की षूरवीरता से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण हैं जो वहाँ से गुजरने वाले हर यात्री में एक उत्सुकता ज गाता है और एक अलिखित कहानी की ओर इंगित करता है जिसके साक्षी खंडवा निमाड़ के घने जंगल और पहा ड़ है I

 

Biography of Tantya Bhil in Hindi

Tantya Mama History

टंट्या भील का वास्तविक नाम तांतिया भील था लोग प्यार से उन्हें तंट्या मामा भी कहते थे | उनका संबंध मध्य प्रदेश के भील आदिवासी समाज से था | टंट्या भील ने अंग्रजों द्वरा किये जा रहे अत्याचारों के विरुद्ध 12 वर्षों तक संघर्ष किया |

स्थानीय लोग उन्हें जन नायक मानते है वहीं अंग्रेजी हुकूमत अन्य क्रांतिकारियों की तरह उन्हें एक विद्रोही और लुटेरा मानती थी | वे अंग्रजी हुकूमत के सरकारी खजाने लूटते थे और लूटे हुए सामान को जरुरतमंदो और गरीबों में बाँट देते थे | अपने इन्ही गुणों केर कारण उन्हें इंडियन रॉबिनहुड भी कहा जाता है |

टंट्या भील ने अंग्रेजो के खिलाफ जीवन भर संघर्ष किया | टंट्या भील से संबंधित कई दन्त-कथायें आज भी कही सुनी जाती हैं | उन्होंने अपने दौर में गरीब और शोषित आदिवासियों के मन में अंग्रेजी शासन के खिलाफ ज्योत जलाई |

इंडियन रॉबिनहुड या मामा के नाम से प्रसिद्ध आदिवासी क्रांतिकरी नेता टांट्या भील का पूर्व निमाड़ खंडवा जिले की पंधाना तहसील के ग्राम बड़दा में 1842 में हुआ था। उनका वास्तविक नाम तात्या भील था, विरदा ग्राम से कुछ दूर पोखर में भाऊसिंह काश्तकारी करता था । उसकी वहाँ पुश्तैनी जमीन थी । उसका पुत्र टण्ड्रा या टंट्या बचपने से ही बड़ा बलवान, निडर और उद्योगी था । जब वह तीस वर्ष का हुआ, तब भाऊसिंह का देहान्त हो गया । उसकी माता का देहान्त पहले ही हो चुका था। टंट्या भील का विवाह कागजबाई से हुआ।

Tantya Mama Ka Bachpan

Biography of Tantya Bhil HIndi me पोस्ट करें का उद्देश्य हिंदी मीडियम के छात्रों को जानकारी उपलब्ध करना है,

टंट्या भील का जन्म खण्डवा जिला जिसे पूर्वी निमाड़ भी कहा जाता है की पंधाना तहसील के बडदा गाँव में 1842 में भील आदिवासी परिवार में हुआ था | इनके पिता का नाम भाऊ सिंह भील था | टंट्या शब्द का शाब्दिक अर्थ झगड़ालू होता है | अन्य भील बच्चों की तरह टंट्या बचपन से ही धनुष-वाण चलाना सीख गए थे | उनका बचपन जंगल और गाँव में ही बीता | टंट्या भील दुबले-पतले और साधारण कद काठी के इंसान थे | जब वो युवा हुए तो उनकी नेतृत्व छमता उभरकर सामने आने लगी उन्होंने लोगों को संगठित किया और आदिवासियों के अद्वितीय नायक के रूप में सामने आये |

तात्या के रोबिन हुड और बहराम डाकू जैसे, जिनमें स्कॉट और आइरिष बागियों जैसा रूणन भी था, कारनामों से तंग आकर ब्रिटिष सरकार ने उसे टंट्या नाम दिया। टंट्या का पिता भाऊसिंह मामूली आदमी लगता था लेकिन बड़े जीवंत और बहुत मेहनती थे। भीलों का पैदाइषी काला रंग और फैली हुई चौड़ी नाक उनकी जातीय पहचान थी ।

निमाड़ के सभी पटेलों की जमीन जोतते बारिष कम हो या फसल न हो तो लगान देना ही पड़ता था । कोई भी षब्द मुंह से निकाल ले तो पटेल धावा बोलकर कहता—“कर्ज लेते वक्त तेरे पेंदे में दरद नहीं हुआ था। अब मुंह ऊपर उठा कर भाव पूछता है साला।”” माँ-बाप की मृत्यु के बाद धोखे से टंट्या की जमीन हथिया ली गई और विरोध करने पर मारपीट और चोरी के इल्जाम में जेल भेज दिया गया। जेल भीलों के लिए फक्र की बात थी । टंट्या जेल में ऐसे कई लोगों से मिला जो पटेलों, जमीदारों व अंग्रेजों के षोषण के षिकार थे और किसी तरह इन सबसे छुटकारा चाहते थे।

जेल से छूटते ही टंट्या पर पटेल और साहूकार फिर कोई इल्जाम लगा कर गिरफ्तार करवा देते हैं। चोरी, लूटपाट, डाका, पुलिस पर मारपीट का आरोप हमेषा के वही इल्जाम लगाये जाते । गोरे साहब के बर्ताव से टंट्या फैसले को भांप गया । टंट्या बहादुर था, सच्चाई पर अडिग था, भरी अदालत में ही वह गरज उठा
“सिपाही को तो सिर्फ पीटा है, टंट्या अगर चाहता तो सूखी लकड़ी की तरह हाथ पैर तोड़ देता । ” ” यहीं से टंट्या का विद्रोही स्वर षुरू होता है वह केवल यहीं नहीं रूकता बल्कि जमीदारों, पटेलों को भी अदालत में ही चेतावनी देता है—“हिम्मत दादा भगवान का नाम लेकर कितनी झूठी कसमें खाओगे ? लेकिन हिम्मत पटेल ध्यान में रखो मैं भील हूँ, तुमने झूठा बयान दिया है और मेरा नाम टंट्या है। टंटे करने वाले टंट्या से ही अब तुम्हारा मुकाबला होगा।

टंट्या भील की वीरता और अदम्य साहस से प्रभावित होकर तात्या टोपे ने उन्हें गुरिल्ला युद्ध में दक्ष बनाया । वह भील जनजाति के ऐसे योद्धा थे, जो अंग्रेजों को लूटकर गरीबों की भूख मिटाने का काम करते थे। इसलिए अंग्रेज उन्हें इंडियन रॉबिनहुड बुलाते थे

Tantya Mama Ke Vidroh Ki Shuruat

आदिवासियों के विद्रोहों की शुरुआत प्लासी युद्ध (1757) के ठीक बाद ही आरंभ हो गई थी और उनका यह संघर्ष 20वीं सदी के आरंभ तक चलता रहा। टंट्या भील संघर्ष की इसी मशाल को थामे हुए थे। वर्ष 1857 से लेकर 1889 तक टंट्या भील ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। वह अपनी गुरिल्ला युद्ध नीति के तहत अंग्रेजों पर हमला करके किसी परिंदे की तरह ओझल हो जाते थे।

टंट्या भील 1857 की क्रांति और 1857 की क्रांति के नायकों से बहुत अधिक प्रभावित थे | 1857 के बाद आम जनता पर अंग्रजों के अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गए | टंट्या का परिवार और आम आदिवासी भी इससे अछूते नहीं थे |

अंग्रेजों के अत्याचारों से तंग आकर टंट्या भील ने संघर्ष का रास्ता चुना | संघर्ष के इस पथ पर स्थानीय लोगों ने भी उनका सांथ दिया | वे अपने संथियों के सांथ मिलकर अंग्रेजों और अंग्रेजों के सहयोगियों को लूटते थे और जो भी धन मिलता उसे गरीब और असहाय लोगों में बाँट देते थे | इन कार्यों से आम आदिवासियों से उन्हें बहुत स्नेह और प्यार मिला | 1874 में पहली बार उन्हें चोरी के मामले में गिरफ्तार किया गया था | 1878 में उन्हें फिर से गिरफ्तार किया गया |

इसके बाद टंट्या ने बड़े स्थर पर अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष शुरू कर दिया उन्होंने जंगल में रहकर गुरिल्ला युद्ध नीति अपनाई | इससे अंग्रेजों को बहुत अधिक नुकसान हो रहा था वे लगातार टंट्या भील को पकड़ने का प्रयास कर रहे थे परन्तु टंट्या उनके हाँथ नहीं आये |

Tantya Mama Ka Jail Se Bhagna

जेल में कुछ दिन रहने के बाद टंट्या भील ने वहाँ से निकल भागने की एक युक्ति सोची । जेल में अन्य दस भील भी सजा भुगत रहे थे । टंट्या ने अपने साथी दोपिया की मदद से अपनी कोठरी के ऊपर की दीवार में एक छेद किया । वह छेद बढ़ा लिया गया और उसी मोखे में से अर्धरात्रि में एक-एक भील बाहर कूद आया; कम्बल भी वे साथ ही बाँध लाये थे । अन्त में टंट्या भील भी बाहर निकल आया, और जेल की बुर्ज पर से गम्भीर गर्जना करता हुआ और अपने भागने की सूचना अधिकारियों को देता हुआ निकल भागा । इसके बाद जेल के अधिकारियों में बड़ी खलबली मची; कई सिपाही उन्हें पकड़ने के लिये पीछे दौड़े; पर टंट्या भील की गर्द भी कोई न पा सका ।

अंग्रेज सरकार के मज़बूत जेलखाने से निकल भागने पर अधिकारी लोग बहुत घबराये और टंट्या को एक बड़ा खतरनाक डाकू समझने लगे । इसके बाद टंट्या भील सचमुच ही एक भयानक डाकू् हो गया ।उसने सैकड़ों धनियो को लूटा; पर वह उदार इतना था, कि गरीबो को वह सदा आर्थिक सहायता दिया करता था । अब उसका दल भी बहुत बड़ा हो गया था, जो बाक़ायदा सब काम करता और टंट्या के नेतृत्व में डाके डालता था ।

उसने अपने शत्रुओं से बदला भी खूब लिया । पोखर निवासियों की करतूतों को वह भूला न था । एक दिन वहाँ उसने अचानक आक्रमण करके सारा गाँव भस्म कर दिया और उस दुष्ट पटेल को पकड़ कर निर्दयता-पूर्वक मार डाला , पर उसके स्त्री, बच्चों को कोई कष्ट न दिया ।

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Tantya Mama Ki Girftari

Biography of Tantya Bhil in Hindiटंट्या निमाड़ अंचल के घने जंगलों में पले बढ़े थे और अंचल के आदिवासियों के बीच शोहरत के मामले में दंतकथाओं के नायकों को भी मात देते हैं। हालांकि उसकी कद-काठी किसी हीमैन की तरह नहीं थी। दुबले-पतले मगर कसे हुए और फुर्तीले बदन के मालिक टंट्या सीधी-सादी तबीयत वाले थे। किशोरावस्था में ही उसकी नेतृत्व क्षमता सामने आने लगी थी और जब वह युवा हुआ तो आदिवासियों के अद्वितीय नायक के रूप में उभरा।

उन्हें अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए आदिवासियों को संगठित किया। धीरे-धीरे टंट्या अंग्रेजों की आंख का कांटा बन गए। इतिहासविद् और रीवा के अवधेशप्रताप सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एसएन यादव कहते हैं कि वह इतने चालाक थे कि अंग्रेजों को उन्हें पकड़ने में करीब 7 साल लग गए। उन्हें वर्ष 1888-89 में राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया।

टंट्या भील को उसकी औपचारिक बहन के पति गणपत के विश्वासघात के कारण गिरफ्तार कर लिया गया।
टंट्या भील की गिरफ्तारी की खबर न्यूयॉर्क टाइम्स के 10 नवंबर 1889 के अंक में प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी। इस समाचार में
उन्हें ‘भारत के रॉबिन हुड’ के रूप में वर्णित किया गया था। डॉ. यादव ने बताया कि मध्यप्रदेश के बड़वाह से लेकर बैतूल तक टंट्या का कार्यक्षेत्र था। शोषित आदिवासियों के मन में सदियों से पनप रहे अंसतोष की अभिव्यक्ति टंट्या भील के रूप में हुई। उन्होंने कहा कि वह इस कदर लोकप्रिय थे कि जब उन्हें गिरफ्तार
करके अदालत में पेश करने के लिए जबलपुर ले जाया गया तो उनकी एक झलक पाने के लिए जगह-जगह जनसैलाब उमड़ पड़ा।

Tantya Mama Ki Mrityu

टंट्या भील के बारे में कहा जाता है कि उन्हें आलौकिक शक्तियां प्राप्त थीं। इन्हीं शक्तियों के सहारे टंट्या एक ही समय में एक साथ सैकड़ों गांवों में सभाएं करते थे। टंट्या की इन शक्तियों के कारण अंग्रेजों के दो हजार सैनिक भी उन्हें पकड़ नहीं पाते थे। देखते ही देखते वह अंग्रेजों की आंखों के सामने से ओझल हो जाते। आखिरकार अपने ही बीच के कुछ लोगों की मिलीभगत के कारण वह अंग्रेजों की पकड़ में आ गए और चार दिसंबर 1889 को उन्हें फांसी दे दी गई। फांसी के बाद अंग्रेजों ने उनके शव को इंदौर के निकट खंडवा रेल मार्ग पर स्थित पातालपानी रेलवे स्टेशन के पास फेंक दिया। इसी जगह को टंट्या की समाधि स्थल माना जाता है। आज भी रेलवे के तमाम लोको पायलट पातालपानी स्टेशन से गुजरते हुए टंट्या को याद करते हैं। इतिहास को भी उन्हें याद करना चाहिए।

 

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Q. टांट्या भील की मृत्यु कैसे हुई थी?
Ans. इंदौर की सेना के एक अधिकारी ने टंट्या को क्षमा करने का वादा किया था, लेकिन घात लगाकर उन्‍हें जबलपुर ले जाया गया, जहाँ उन पर मुकदमा चलाया गया और 4 दिसंबर 1889 को उसे फांसी दे दी गई।

Q. टांट्या मामा को रोबीनहूड क्यों कहा जाता था?
Ans. टांट्या मामा अंग्रेज अधिकारी और बड़े साहूकारों को लूटकर गरीबों में बाटते थे इसलिए उनको रोबीनहूड कहा जाता था

Q. टांट्या मामा का असली नाम क्या था ?
Ans. टांट्या मामा का असली नाम तात्या था

Conclusion
आदिवासियों के मसीहा कहे जाने वाले टंट्या भील की जिवंत कहानी की प्रेरणा से काम नहीं है, गरीब किसान से विद्रोही बनने के लिए मजबूर होने और अपनों के लिए अंग्रेजों से लड़ने की कहानी हम सब ने पढ़ी, टंट्या भील ऐसे ही एक सिपाही थे, जिन्हें इतिहास ने अपेक्षित स्थान नहीं दिया। हालांकि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासी वर्गो में उनकी पूजा की जाती है। और मध्यप्रदेश  सरकार ने 4 दिसंबर को बलिदान दिवस जो मान सम्मान दीया है उसके लिए विशेष धन्यवाद, हम सदा ऐसे वीर सपूतों के कर्जदार रहेंगे
जय हिन्द

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