MP की भू-वैज्ञानिक संरचना

MP की भू-वैज्ञानिक संरचना, यह पठार भू-वैज्ञानिक इतिहास में कभी भी पूर्णतः जलमग्न नहीं हुआ है। केवल कुछ समय तक के लिए इस पठार का कुछ भाग छिछले समुद्रों से ढका था । इसी कारण इस पठार पर विभिन्न कालों की भू-वैज्ञानिक संरचना का विकास हुआ है। मध्य प्रदेश का अधिकांश भाग प्रायद्वीपीय पठार का हिस्सा होने के कारण यहाँ विभिन्न कालों की MP की भू-वैज्ञानिक संरचना देखने को मिलती है।

MP की भू-वैज्ञानिक संरचना

MP की भू-वैज्ञानिक संरचना संरचना को निम्नलिखित कालों में विभाजित किया जा सकता है

मध्य प्रदेश की भू-वैज्ञानिक संरचना
मध्य प्रदेश की भू-वैज्ञानिक संरचना

आद्य महाकल्प (आर्कियन) क्रम की चट्टानें

  • ये सर्वाधिक प्राचीन और प्राथमिक आग्नेय चट्टानें हैं, क्योंकि इनका निर्माण तप्त व पिघली हुई पृथ्वी के ठण्डे होने के दौरान हुआ था ।
  • वर्तमान में अत्यधिक रूपान्तरण के कारण इन चट्टानों का मूल रूप नष्ट हो चुका है ।
  • आर्कियन काल की चट्टानें पृथ्वी की प्रथम कठोर चट्टानें मानी जाती है ।
  • इन प्रारंभिक चट्टानों में जीवाश्म के अवशेष नहीं पाए जाते हैं, क्योंकि तत्कालीन समय में पृथ्वी पर जीवन का विकास नहीं हुआ था। मध्य प्रदेश में इस काल की चट्टानें बुन्देलखण्ड नीस के रूप में बुन्देलखण्ड क्षेत्र में मिलती है।
  • प्रदेश में इनका विस्तार सर्वाधिक है।

धारवाड़ क्रम की चट्टानें

  • इन चट्टानों का निर्माण आर्कियन क्रम की चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण से हुआ है। इसलिए ये अवसादी चट्टानें हैं ।
  • ये सबसे प्राचीन अवसादी चट्टानें हैं ।
  • इन चट्टानों में जीवाश्म नहीं पाये जाते हैं। इसके दो कारण माने जाते हैं या तो उस समय तक जीवों की उत्पत्ति नहीं हुई थी या फिर लंबा समय बीत जाने के कारण इन चट्टानों के जीवाश्म नष्ट हो गए थे ।
  • इस क्रम की चट्टानें कर्नाटक के धारवाड़ व शिमोगा जिले में पायी जाती है, इसीलिए इन्हें “धारवाड़” नाम दिया गया है ।
  • धारवाड़ समूह की चट्टानें मुख्य रूप से जबलपुर, बालाघाट एवं छिन्दवाड़ा जिलों में मिलती है ।
  • जबलपुर में ये चट्टानें चूने के पत्थर के रूप में तथा छिन्दवाड़ा में सौंसर एवं सिकोली सीरीज के रूप में एवं बालाघाट में चिलपी सीरीज के रूप में ये चट्टानें पाई जाती हैं ।
  • सौंसर एवं सिकोली सीरीज में मैंगनीज तथा चिल्पी सीरीज में स्लेट एवं फाइलाइट की मोटी तहें मिलती है।
  • प्राचीन कठोर चट्टानों के अपरदन से बनने के कारण इन चट्टानों में भी जीवाश्म नहीं मिलते हैं। पुरान संघ समयावधि के आधार पर पुरान संघ की चट्टानों को दो भागों में बाँटा जाता है। ये कड़प्पा तथा विंध्यन शैल समूह हैं-

कड़प्पा समूह

  • ये अवसादी चट्टानें है क्योंकि इनका निर्माण धारवाड़ क्रम की चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण से हुआ है ।
  • आंध्र प्रदेश के कड़प्पा जिले में इस क्रम की चट्टानें अर्द्ध-वृत्ताकार क्षेत्र में विस्तृत पायी जाती है, इसीलिए इनका नाम ‘कड़प्पा’ रखा गया है ।
  • मध्यप्रदेश में कड़प्पा समूह की चट्टानें बिजावर, पन्ना एवं ग्वालियर में शैल, जास्पर, पोर्सलेनाइट एवं हार्नस्टोन के रूप में पाई जाती है।
  • कड़प्पा समूह की चट्टानें अत्यधिक टूटी एवं कायान्तरित रूप में देखने को मिलती है। प्रदेश में बिजावर की कड़प्पा शैल में हीरा मिलता है ।

विंध्यन क्रम की चट्टानें

  • विंध्यन क्रम की चट्टानें अवसादी चट्टानें हैं, क्योंकि इनका निर्माण कड़प्पा चट्टानों के बाद अवसादी के निक्षेपण में हुआ है ।
  • इन चट्टानों में जीवाश्मों के भी प्रमाण पाये जाते हैं ।
  • मध्यप्रदेश की पन्ना की खानें और कर्नाटक की गोलकुंडा की खानें जहाँ से हीरा प्राप्त होता है विंध्यन क्रम की चट्टानें में ही स्थित है ।
  • प्रदेश में इन चट्टानों का विस्तार सोन नदी के उत्तर-पश्चिम में रीवा से लेकर चम्बल नदी के पश्चिम में राजस्थान तक है।
  • प्रदेश में विन्ध्यन शैल समूह की चट्टानें जलज प्रकार की हैं। इन पर अन्तरभौमिक क्रियाओं का प्रभाव नहीं पड़ा है।
  • विन्ध्यन शैल समूह की चट्टानों को लोअर विन्ध्यन एवं अपर विन्ध्यन में विभाजित किया जाता है।
  • लोअर विन्ध्यन शैल समूह सोन घाटी में चूने का पत्थर, शैल तथा बालू पत्थर के रूप में फैली है।
  • अपर विन्ध्यन समूह की चट्टानें नर्मदा के उत्तर में कैमूर, रीवा तथा भाण्डेर सीरीज के रूप में फैली है।
  • अपर विन्ध्यन समूह की चट्टानों में अल्प मात्रा में छोटे जन्तुओं एवं वनस्पति के अंश मिलते हैं।

आर्य समूह

  • आर्य समूह की चट्टानें जलज प्रकार की है, क्योंकि इनकी उत्पत्ति जलीय क्षेत्रों में अवसाद के निक्षेपण के कारण हुई हैं।
  • आर्य समूह की चट्टानें मध्य प्रदेश में गोण्डवाना शैल समूह के रूप में पाई जाती है।

गोंडवाना क्रम की चट्टानें

  • इन चट्टानों का निर्माण कार्बनीफेरस से जुरासिक काल के बीच हुआ था। भारत का अधिकांश कोयला गोंडवाना क्रम की चट्टानों में ही पाया
  • जाता है ।
  • मध्य प्रदेश में गोण्डवाना शैल समूह की चट्टानें सतपुड़ा एवं बघेलखण्ड पठार पर मिलती है।
  • प्रदेश में इस समूह की चट्टानों का अध्ययन तीन भागों-लोअर गोण्डवाना, मध्य गोण्डवाना एवं अपर गोण्डवाना में विभाजित करके किया जाता है।
  • लोअर गोण्डवाना समूह की चट्टानें सोन एवं महानदी घाटी में तालचीर के रूप में फैली हैं ।
  • मध्य प्रदेश के पेंचघाटी एवं मोहपानी के कोयला क्षेत्र इसी समूह की चट्टानों में स्थित है।
  • प्रदेश में मध्य गोण्डवाना समूह की चट्टानें सतपुड़ा के चारों स्तर (पंचेत, पचमढ़ी, देनवा एवं बागरा) में मिलती हैं ।
  • मध्य गोण्डवाना समूह की चट्टानों में बालू का पत्थर मिलता है। अपर गोण्डवाना समूह की चट्टानों में बालू एवं चूने के पत्थर, शैल, कोयला एवं वानस्पतिक पदार्थ मिलते हैं।

क्रिटेशस कल्प

  • प्रदेश में क्रिटेशस कल्प की चट्टानें बाघ सीरीज एवं लमेटा सीरीज के रूप में पाई जाती है।
  • क्रिटेशस कल्प की चट्टानों में सिलिका मिश्रित चूने के पत्थर, बालू पत्थर, ग्रिट एवं क्ले तथा जीवाश्मों के अवशेष पाए जाते हैं।

तृतीय शैल समूह

  • तृतीयक शैल समूह की चट्टानें दक्षिणी मध्य प्रदेश में स्थित है। प्रदेश में तृतीय काल में नर्मदा-सोन घाटी का निर्माण हुआ एवं उत्तरी
  • मध्य प्रदेश के प्रपाती दलान भी इसी काल में विकसित हुए प्रदेश में पठारी भागों में नदी घाटियों का निर्माण तृतीय काल में हुआ ।

दक्कन ट्रेप

  • मैसोजोइक युग के अंतिम समय में अर्थात् क्रिटेशस काल में प्रायद्वीपीय भारत में हुई दरारी ज्वालामुखी क्रिया से मीदीनुमा दक्कन ट्रेप का निर्माण हुआ है ।

 

MP सिलेबस के लिए क्लिक करें : MP Syllabus 2022

 

 

Leave a Comment