Madhya Pradesh Ke Van | मध्य प्रदेश के वन

मध्य प्रदेश देश का सर्वाधिक वनक्षेत्र वाला राज्य है। मण्डला, डिंडोरी, शहडोल, छिंदवाड़ा, बैतूल, होशंगाबाद, बालाघाट के वनों में साल और सागौन वृक्ष प्रजातियां हैं, और चम्बल क्षेत्र में झाड़ीदार वन पाए जाते हैं, वनवासियों के आवास स्थल मध्य प्रदेश के इन्हीं वनों में अथवा वनों के आसपास हैं। दोस्तों वनो के बारें में विस्तृत अध्यन आवश्यक है क्योंकि मध्यप्रदेश के किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में इससे जुड़े सवाल पूछे जातें है खासकर MPPSC एवं Patwari की परीक्षा में, वनो की संख्या एवं प्रकार के नोट्स बनाकर रखिये ताकि आप इसे अच्छे से याद कर पाएं

मध्य प्रदेश में कुल वन क्षेत्रफल

वन स्थिति रिपोर्ट 2019 के अनुसार मध्य प्रदेश का वन क्षेत्र (RFA – रेजिस्टर्ड फारेस्ट एरिया ) 94,689 वर्ग किमी है, जिसमें से 61,886 वर्ग किमी आरक्षित वन है, 31,098 वर्ग किमी संरक्षित वन है और 1,705 वर्ग किमी अवर्गीकृत वन है। 

मध्य प्रदेश में तीन प्रकार के वन पाए जाते हैं 

  • ऊष्ण-कटिबंधीय शुष्क वन
  • ऊष्ण-कटिबंधीय पर्णपती वन
  • ऊष्ण-कटिबंधीय अर्द्ध पर्णपाती वन

Madhya Pradesh Ke Van

ऊष्ण-कटिबंधीय शुष्क वन

  • मध्य प्रदेश में ऊष्ण-कटिबंधीय शुष्क वन भिंड, मुरैना, ग्वालियर, रतलाम, शिवपुरी आदि जिलों में पाए जाते हैं।
  • इस प्रकार के वन 75 सेंटीमीटर से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
  • इन्हें कंटीले वन भी कहा जाता है।
  • बबूल, शीशम, हर्रा, पलाश, तेंदू आदि प्रकार के वृक्ष इस प्रकार के वनों में पाए जाते हैं।
  • यह लगभग 0.26% भाग पर फैले हुए हैं।

 

ऊष्ण-कटिबंधीय पर्णपाती वन

  • ऊष्ण-कटिबंधीय पर्णपाती वन मध्य प्रदेश के छतरपुर, छिंदवाड़ा, सिवनी, सागर, दमोह, जबलपुर, पन्ना, होशंगाबाद आदि जिलों में पाए जाते हैं।
  • इस प्रकार के वन मध्यप्रदेश के सर्वाधिक भाग पर पाए जाते हैं।
  • इन वनो में वनों में औसत वर्षा 50 – 100 सेंटीमीटर तक होती है तथा यह वन पानी की कमी आने पर अपने सारे पत्ते गिरा देते हैं इसलिए इन्हें पर्णपाती वन कहा जाता है।
  • शीशम, नीम, सागौन, पीपल आदि प्रकार के वृक्ष इस प्रकार के वनों में पाए जाते हैं।
  • यह मध्य प्रदेश के कुल वन क्षेत्रफल के लगभग 88.65% पर फैले हुए हैं।

ऊष्ण-कटिबंधीय अर्द्ध पर्णपाती

  • ऊष्ण-कटिबंधीय अर्द्ध पर्णपाती वन मध्यप्रदेश के शहडोल, सीधी, बालाघाट, मंडला आदि जिलों में पाए जाते हैं।
  • ये वन पूर्णतः अपने पत्तों को नहीं गिराते हैं।
  • बांस, साल, सागौन आदि के वृक्ष इस प्रकार के वनों में पाए जाते हैं।
  • इनका क्षेत्रफल लगभग 8.97% है।
  • इन वनो में में औसत वर्षा 100 – 150 सेंटीमीटर तक होती है।

वनो का वर्गीकरण

म.प्र. में तीन प्रकार के वन पाये जाते हैं।
1. आरक्षित वन: – इन पर सरकार का पूरा अधिकार होता है और इनमें पशुओं को चराना और लकड़ी काटना पूरी तरह से प्रतिबंधित होता हैं। ये राज्य में 61,886.49 वर्ग किमी क्षेत्र मे हैं । फेले हुए हैं।

2. संरक्षित वन :- ये वनभूमि कटाव को रोकने के लिए एवं जलवायु के हिसाब से महत्वपूर्ण होते हैं। इनमें पशुचारण एवं लकड़ी काटने का काम सरकार की अनुमति से ही किया जा सकता हैं । ये राज्य में 31,098.04 वर्ग किमी क्षेत्र मे फेले हुए हैं।

3. अवर्गीकृत वन :- इन वनों में पशुओं का वर्तना और लकड़ी की कटाई की जा सकती है । इनका क्षेत्रफल 1704.85 वर्ग किमी है।

प्रमुख बिंदु

  • मध्य प्रदेश वनों का राष्ट्रीयकरण करने वाला भारत का प्रथम राज्य है।
  • मध्यप्रदेश में वनों का राष्ट्रीयकरण सन 1970 में किया गया था।
  • मध्यप्रदेश में वनों के राष्ट्रीयकरण के तहत तेंदूपत्ता का राष्ट्रीयकरण सबसे पहले किया गया था।
  • मध्यप्रदेश में सर्वाधिक आरक्षित वन खंडवा में तथा सबसे कम आरक्षित वन उज्जैन में पाए जाते हैं।
  • मध्य प्रदेश में 16 क्षेत्रीय वन वृत्त और 63 क्षेत्रीय वन मंडल हैं।
  • मध्य प्रदेश वन विकास निगम की स्थापना सन् 1975 में की गई थी।

 

मध्य प्रदेश में वन ग्रामों की संख्या

  • मध्य प्रदेश में कुल वन ग्रामों की संख्या 925 है,
  • जिसमें से 15 वीरान एवं 17 विस्थापित हैं।
  • वर्तमान में 893 वन ग्राम हैं, जिनमें से 827 क्षेत्रीय वन मंडलों में, 27 राष्ट्रीय उद्यानों में और 39 अभ्यारण्यों में स्थित हैं ।

मध्य प्रदेश में वनोपज का उत्पादन

  • राज्य में मुख्य रूप से सागौन, साल, बांस, खैर तथा अन्य मिश्रित प्रजातियों के वन पाये जाते हैं।
  • ईमारती लकड़ी, जलाऊ, बांस व खैर का वन वर्धन के सिद्धांत के अनुसार विदोहन किया जाता है।
  • वनोपज की औद्योगिक व व्यापारिक आवश्यकताओं और वनों के समीप बसे ग्रामीणों की घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आवश्यक व्यवस्था की जाती है ।

वन वृक्षों के आधार पर वनों का वर्गीकरण

सागौन वन :-

  • इसका बोटनीकल नेम ‘टेक्टोनेग्रेन्डाई है।
  • मध्यप्रदेश में सागौन के वन कुल वन क्षेत्रफल के 17.8 प्रतिशत क्षेत्र पर पाये जाते हैं।
  • सागौन वन जबलपुर, होंशगाबाद, बैतूल, सागर, छिंदवाड़ा, झाबुआ, धार, खण्डवा जिलों में स्थित है।
  • सागौन की लकड़ी इमारती प्रयोग में आती है।
  • सागौन वनों के लिये 75-125 सेमी. वर्षा पर्याप्त होती है।
  • सागौन वन काली मिट्टी वाले क्षेत्र में पाये जाते है।
  • होशंगाबाद की चोरी घाटी में सर्वाधिक सागोन पाये जाते हैं।

साल वन :-

  • इसका बोटनीकल नाम ‘शोरिया रोबुस्ता’ है।
  • मध्यप्रदेश के कुल वन क्षेत्र के 16.54 प्रतिशत क्षेत्रफल पर साल वन पाये जाते है।
  • साल की लकड़ी का प्रयोग स्लीपर बनाने में किया जाता है।
  • साल वृक्ष का मध्यप्रदेश में मुख्य क्षेत्र मण्डला, बालाघाट, उमरिया, सीधी, शहडोल है।
  • साल के वृक्ष प्रायः घने होते हैं। इन वनों में दिन में भी अंधेरा रहता है।
  • साल वनों के लिये औसत 125 सेमी. वर्षा वाला क्षेत्र चाहिए।
  • ये मध्यप्रदेश के लाल ओर पीली मिट्टी वाले क्षेत्र में पाये जाते है।

मिश्र पर्णपाती वन-

  • इनमें मुख्यतः साज, धावणा, बीजा, महुआ, बांस, पलाश, बबूल, हर्रा, आदि वन पाये जाते है।
  • मध्यप्रदेश में मिश्रित वन मुख्यतः बालाघाट, होशंगाबाद, मण्डला एवं छिंदवाड़ा जिलो में पाये जाते हैं।

वन सम्पत्ति

  • बाँस – बाँस 75 सेमी. या अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में पाया जाता है। मध्यप्रदेश में डैन्ड्रोकेल्मस स्ट्रिक्स प्रजाति का बाँस के वृक्ष पाये जाते हैं।
  • खैर वृक्ष – खैर वृक्ष का उपयोग कत्था बनाने में किया जाता हैं। इस वृक्ष का प्रयोग चर्म शोधन व पेंट के लिये किया जाता है। पाचन तंत्र की खराबी में भी यह वृक्ष उपयोगी है। मध्य प्रदेश में शिवपुरी, रीवा तथा बामौर में कत्था बनाने के कारखाने हैं । यह मुख्यतः छिंदवाड़ा, मण्डला, बालाघाट, श्योपुर, शहडोल के वनों में पैदा होता है । हर्रा का प्रयोग चर्म शोधन में किया जाता हैं। इससे चमड़ा साफ करने का लोशन बनाया जाता है।
  • लाख – लाख मध्यप्रदेश में मण्डला, जबलपुर, सिवनी, शहडोल, तथा होशंगाबाद के वनों में पाया जाता है। यह मुख्यतः पलाश, घोट व अरहर के वृक्षों से प्राप्त
    किया जाता है। राज्य के उमरिया जिले में लाख बनाने का सरकारी कारखाना है। इसका उपयोग चूड़ी, औषधि, सौंदर्य सामग्री, खिलौना निर्माण, रसायन में होता है।
  • भिलाला – भिलाला स्याही और पेंट बनाने के काम आता है। छिंदवाड़ा में इसका एक कारखाना है।
  • तेंदूपत्ता – मध्य प्रदेश में देश का सबसे अधिक तेंदूपत्ता पाया जाता है । सम्पूर्ण देश का 60 प्रतिशत तेंदूपत्ता मध्यप्रदेश में पाया जाता है। तेंदूपत्ता सबसे अधिक जबलपुर, रीवा, दमोह, शहडोल जिलों में पाया जाता है। राज्य में तेंदूपत्ता संग्रहण सहकारिता के आधार पर होता है। इसकी पत्तियों से बीड़ी बनाई जाती है। राज्य मे लगभग 260 बीड़ी कारखाने कार्यरत है।
  • गोंद – गोंद साधारणतः बबूल, धावणा, सलाई, आदि वृक्षों से प्राप्त होता है। खाने के अतिरिक्त गोंद का प्रयोग पेंट उद्योग, पेपर प्रिंटिंग, दवा उद्योग, कॉस्मेटिक आदि में होता है ।

वन अनुसंधान एवं वन विद्यालय

  • मध्यप्रदेश वन विकास निगम की स्थापना 24 जुलाई 1975 को की गई थी।
  • इण्डियन फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट देहरादून की चार क्षेत्रीय प्रयोगशालाओं मे से एक मध्य प्रदेश के जबलपुर में है।
  • मध्यप्रदेश में भारतीय वन प्रबन्धन संस्थान भोपाल में स्थित है। इसकी स्थापना 1982 में की गयी थी।
  • 1979 में बालघाट मे वन राजकीय महाविद्यालय स्थापित किया गया। सन् 1980 में दूसरा महाविद्यालय बैतूल में स्थापित किया गया।
  • म.प्र. में सबसे अधिक वन घनत्व बालाघाट में है।
  • वनों का शत-प्रतिशत राष्ट्रीयकरण करने वाला पहला राज्य म.प्र. है ।
  • म.प्र. में सबसे अधिक क्षेत्र में सागौन के वन पाये जाते हैं। इसके बाद साल और बांस के वृक्ष पाये जाते हैं।
  • होशंगाबाद, खण्डवा, बैतूल और बालाघाट जिलों में 50% से अधिक भूमि वनों के अंतर्गत हैं।

वानिकी पुरस्कार

  • अमृतादेवी स्मृति पुरस्कार – यह पुरस्कार वन और वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में दिया जाता है। वृक्षों को बचाने के लिये प्राणोत्सर्ग करने वाले जनसमूह का
    नेतृत्व करने वाली वीरांगना अमृता देवी की स्मृति में यह पुरस्कार सन् 1994 से राजस्थान ने प्रांरभ किया गया है।
  • वन प्रहरी पुरस्कार – वनों में अग्नि की रोकथाम, अवैध वन कटाई को रोकन तथा वन्य जीव जंतुओं की सुरक्षा के क्षेत्र मे उल्लेखनीय कार्य करने वाली संस्थाओं अथवा व्यक्ति विशेष को दो श्रेणियो मे विभक्त यह पुरस्कार राज्य एवं जिला स्तर पर प्रदान किये जाते हैं।
  • वृक्षमित्र पुरस्कार – श्रीमती इंदिरागाँधी की स्मृति में भारत सरकार द्वारा प्रति वर्ष उनकी जन्म तिथि 19 नवम्बर के अवसर पर इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र
    पुरस्कार दिया जाता है।
  • महावृक्ष पुरस्कार – प्राचीन एवं विशिष्ट प्रजातियों के वृक्षों को पहचान कर सुरक्षित करने के उद्देश्य से वर्ष 1995 से महावृक्ष पुरस्कार योजना शुरु की गई है ।

वनों के विकास के लिए किए जा रहे प्रयास

मध्यप्रदेश सरकार द्वारा वन से संबंधित निम्न योजनाएँ चलाई जा रही है-

1. सामाजिक वानिकी योजना: – 1970 में शुरू गई इस योजना द्वारा सामाजिक वानिकी कार्यक्रम को जन आंदोलन का रूप देकर सरकारी वन नीति के
अनुसार घोषित निर्धारित मापदंड के अनुसार 33.3 प्रतिशत भाग पर वन लागाना चाहिए। 1987-88 से प्रदेश के समस्त जिलों में 36 सामाजिक वन मंडलों द्वारा नवीन सामाजिक वानिकी कार्यक्रम को क्रियान्वित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत पंचायतो के माध्यम से लोगों के द्वारा अपनी स्वंय की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु वन्यीकरण किया जा रहा है। प्रदेश में जनता को सामाजिक वानिकी योजनाओं के माध्यम से वृक्षारोपण कार्यक्रम से सक्रिय रूप से जोड़ने के प्रयास किए गए है।

2. पर्यावरण वानिकी कार्यक्रम:- 1983-84 में प्रारंभ की गई इस योजना में शहरी क्षेत्र में वृक्षारोपण का कार्य किया जाता है। जिससे छोटे-2 शहरी पार्क सड़को के किनारे और अन्य सामुदायिक क्षेत्रो में वृक्षारोपण करके शहरों में हरियाली लाने का कार्य किया जाता है।

3. चारागाह विकास योजना :- इस योजना के तहत राज्य के उन 14 जिलों में जिनमें वर्षा का अभाव है। उनमें जलाऊ लकड़ी वृक्षारोपण एवं चारागाह का विकास किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीणों को अधिक जलाऊ लकड़ी और पशुओ को चारा उपलब्ध कराना है।

4. पंचवन योजाना :- 1976 से प्रारंभ की गई इस योजना का मुख्य उद्देश्य वनोंपजों के घटते अनुपात को देखते हुए नागरिकों की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वन्यीकरण को प्रेरित करना है।

5. बिगड़े वनों का सुधार कार्यक्रम :- इस योजना के तहत अवर्गीकृत वनों का वन्यीकरण किया जाता है और जैविक दवाओं से इस क्षेत्र को सुरक्षा देकर आवश्यकतानुसार भूमि एवं जल संरक्षण तथा वनीकरण के कार्य करके वनों को पुनरोत्थान किया जाता है।

6. भूमि एवं जल संरक्षण योजना :- 1951-52 से प्रारंभ की गई इस योजना के अंतर्गत वन्य भूमि में आवश्यकतानुसार चैक डेम प्लानिंग का कार्य किया
जाता है। आवश्यकतानुसार सीमित मात्रा में वृक्षारोपण भी कराया जाता है। इस योजना के अंतर्गत म.प्र. में होशंगाबाद एवं ग्वालियर वन वृत्त में भूमि एवं जल
संरक्षण के कार्य किए जाते है।

7. एकीकृत वनीकरण और पारिस्थिति की विकास योजना :- केन्द्र द्वारा प्रवर्तित इस योजना में प्रदेश के 16 जिलों में वन भूमि में वनों का सुधार कार्यक्रम के
अंतर्गत वन्यीकरण किया जा रहा है।

8. आदिवासियों के माध्यम से बिगड़े वनों का सुधार :- राज्य के 8 जिलों में केन्द्र प्रवर्तित यह योजना लागू है। जिससे आदिवासियों के माध्यम से उजड़े वनों के सुधार कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

9. लघु वनोपज रोपण की योजना :- 1990-91 से प्रारंभ की गई केन्द्र प्रवर्तित इस योजना के अंतर्गत म.प्र. राज्य वन विकास निगम द्वारा लघु वनोपज और औषधियों के पौधों का रोपण किया जाता है।

10. म.प्र. वन विकास निगम :- 24 जुलाई 1975 को स्थापित इस संस्था का मुख्य उद्देश्य वनों की उत्पादन क्षमता में त्वरित गति से वृद्धि करना है ।

11. विकेन्द्रित रोपणी योजना :- यह वानिकी में सामान्य जन की रुचि जाग्रत करने वाली योजना है। इसके अंतर्गत प्रत्येक रोपणी धारक को 45 पैसे प्रति
उत्पादित पौधे पर अनुदान दिया जाता है। इस योजना में लघु एवं सीमांत कृषकों को प्राथमिकता दी जाती है। इसके प्रचार-प्रसार के लिए जिले में सामाजिक
वानिकी सम्मेलन आयोजित किए जाते है ।

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वन विभाग का दायित्व

विभाग का दायित्व वनों का वैज्ञानिक दृष्टि से प्रबंधन करना है, ताकि वनों की संवहनीयता बनाए रखते हुए उनका संरक्षण व संवर्धन किया जा सके, स्थानीय लोगों को उनकी आवश्यकता के वन उत्पाद यथासंभव प्राप्त हो सकें, तथा वन आधारित उद्योगों को कच्चे माल की पूर्ति की जा सके। इन दायित्वों के निर्वहन के लिए विभाग की निम्न प्राथमिकताएं निर्धारित की गई हैं

  1. वन एवं वन्य प्राणियों का संरक्षण |
  2. वन क्षेत्रों में जैव विविधता संरक्षण ।
  3. वनों का विकास तथा बिगड़े वनों का सुधार करते हुए उत्पादकता बढ़ाना।
  4. वनेत्तर भूमि पर वृक्षारोपण को बढ़ावा देना ।
  5. वैज्ञानिक विधि से वनों का समयबद्ध विदोहन कर वनोपज को समय से बाजार में
  6. उपलब्ध कराने की व्यवस्था करना ।
  7. निस्तार प्रदाय की व्यवस्था करना।
  8. भूमिस्वामी क्षेत्र पर उपलब्ध वनोपज के विदोहन एवं निवर्तन हेतु लाभकारी प्रणाली स्थापित करना ।
  9. वनोपज के निवर्तन से राजस्व अर्जन करना ।
  10. उपरोक्त समस्त दायित्यों को पूर्ण करने हेतु वनों की सुरक्षा एवं प्रबंधन में जन भागीदारी सुनिश्चित करना।
  11. वन प्रबंधन में सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करना ।
  12. ईकोपर्यटन को बढ़ावा देते हुए वनों के बारे में आम जनता में जागरूकता का विकास करना ।

FAQS

Q- मध्य प्रदेश में कितने प्रकार के वन हैं?
Ans – मध्य प्रदेश में तीन प्रकार के वन पाए जाते हैं

  • ऊष्ण-कटिबंधीय शुष्क वन
  • ऊष्ण-कटिबंधीय पर्णपती वन
  • ऊष्ण-कटिबंधीय अर्द्ध पर्णपाती वन

Q- मध्य प्रदेश में कितने वन मंडल है?

Ans –

  • वृत्त 16
  • वनमंडल 63
  • उपवनमंडल 135
  • परिक्षेत्र 473
  • उप वन परिक्षेत्र 1871
  • परिसर 8286

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