Consumer Protection Act in Hindi

उपभोक्ता संरक्षण अधिकार जिसे Consumer Protection Act भी कहा जाता है MPPSC / CIVIL JUDGE सभी प्रतियोगी परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण, Consumer Protection Act in Hindi के पोस्ट के माध्यम से आपको जानकारी उपलब्ध करवा रहे हैं

The Consumer Protection Act

उपभोक्ता संरक्षण अधिकार

1969 में, संसद ने एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापार  व्यवहार (MRTP) अधिनियम पारित किया जिससे एकाधिकार आयोग की स्थापना हुई। The Consumer Protection के लिए आयोग को एकाधिकार तथा अवरोध
क व्यापारिक व्यवहार संबंधी परिवादों को विचारार्थ स्वीकार करने की शक्तियां प्रदान की गई और बाद में, 1984 में संशोधन अधि नियम के द्वारा अनुचित व्यापार व्यवहार को भी इसकी अधिकारिता में जोड़ दिया गया। किन्तु यह अनुभव हुआ कि MRTP आयोग को प्रदत्त शक्तियां उपभोक्ताओं को प्रत्यक्ष रूप से संरक्षण प्रदान करने के लिए पर्याप्त नहीं है क्योंकि आयोग की स्थापना का मुख्य उद्देश्य इस आशा से प्रतियोगिता का  नियमन करना था कि इसके फलस्वरूप उचित आचरण को बढ़ावा मिलेगा, जिसके सुपरिणाम अंततः उभोक्ता तक पहुंचेंगे।

अतः उपभोक्ताओं के हितों के बेहतर संरक्षण के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 लागू किया गया। इसे 24 दिसम्बर, 1986 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई। इस अधिनियम के अंतर्गत व्यापार में धोखाधड़ी, प्रतिबंधित व्यापार, खराब समान की बिक्री तथा चिकित्सा एवं अन्य दोषपूर्ण सेवाओं से संबंधित उपभोक्तओं की शिकायतों का निपटारा करने के लिए तीन स्तरों की एक प्रणाली स्थापित की गई है:

जिल स्तर का न्यायालय

ये न्यायालय संबंधि त राज्य सरकारों द्वारा केन्द्र सरकार के अनुमोदन से राज्य के प्रत्येक जिले में स्थापित किए जाते हैं;
राज्य आयोग : राज्य सरकार द्वार केन्द्र सरकार के अनुमोदन से प्रत्येक राज्य में एक राज्य आयोग की स्थापना की जाती है;

राष्ट्रीय आयोग

केन्द्र सरकार ने समूचे देश के लिए एक राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग स्थापना किया है जो नई दिल्ली में अवस्थित है।
जिला स्तर के अयोग की अधिकारिता उपभोक्ताओं की उन सभी शिकायतों की सुनवाई करने तक सीमित है जिनमें माल तथा सेवाओं का मूल्य और प्रतिपूर्ण, यदि कोई मांगी
गई हो, 20 लाख रुपये से कम है। राज्य आयोग उन शिकायतों को विचारार्थ स्वीकार करता है जिनमें माल और सेवाओं का मूल्य और प्रतिपूर्ति, यदि कोई मांगी
गई हो, 20 लाख से अधिक है किन्तु एक करोड़ से अधिक नहीं है।

यह राज्य के भीतर कार्यरत जिला स्तर के न्यायालयों के विरूद्ध अपीलों की सुनवाई भी करता है। इसे पुनरीक्षण करने की भी शक्ति है। इसके अलावा, यह किसी ऐसे उपभोक्ता विवाद में अभिलेख मंगाकर उपयुक्त आदेश पारित कर सकता है जो इसके पास लंबित हो या जिसका फैसला राज्य के किसी जिला स्तर के उपभोक्ता संरक्षण न्यायालय द्वारा किया जा चुका हो और उसमें राज्य आयोग को यह लगता हो कि जिला स्तर के न्यायालय ने ऐसी अधिकारिता प्रयोग किया है जो विधि द्वारा उसे प्रदान नहीं की गई है; या वह विधि द्वारा प्रदत्त अधिकारिता का प्रयोग करने में असफल रहा है या उसने अपनी अधिकारिता का प्रयोग अवैध रीति से तात्विक
अनियमितता के साथ किया है।

राष्ट्रीय आयोग को ऐसी शिकायतों को विचारार्थ स्वीकार करने की आरंभिक अधिकारिता भी प्राप्त है जिनमें वस्तुओं या सेवाओं का मूल्य अथवा प्रतिपूर्ति के दावे की रकम रु. एक करोड़ रुपये से अधिक हो। इसे राज्य आयोग के आदेश से व्यथित किसी व्यक्ति को अपील की सुनवाई करने का अधिकार है और पुनरीक्षण की शक्तियां भी है। राष्ट्रीय आयोग के आदेश के विरूद्ध अपील अधिनियम की धारा 23 के अधीन सीधे उच्चतम न्यायालय में किए जाने का उपबंध है। ऐसी अपील आदेश पारित होने की तारीख के 30 दिन के भीतर की जानी चाहिए। उपभोक्ता न्यायालय उपभोक्ताओं की बहुमूल्य सेवा करते हैं। इनमें दोषपूर्ण सेवा के लिए परिवाद किया जा सकता है। साथ ही, सरकार, लोक उपक्रमों, बैंकों, विद्युत बोर्डों, आवास मंडलो, जीवन बीमा निगम, भवन निर्माताओं, विनिर्माताओं और निजी उपक्रमों आदि के विरूद्ध शिकायतें लाई जा सकती हैं।

एकाधिकार आयोग और उपभोक्ता न्यायालयों की अधिकारिता कुछ हद तक अंशाच्छादी है पर उपभोक्ता न्यायालयों का मुख्य लाभ यह है कि भारत में सर्वत्र शिकायत का निवारण कराया जा सकता है जबकि एकाधिकार आयोग केवल दिल्ली में अवस्थित है। इसमें संदेह नहीं कि यदि ठीक से उपयोग किया जाए और प्रशासित किया जाए तो उपभोक्ता न्यायालय बड़े सशक्त और महत्वपूर्ण न्यायालय हैं। ये साक्ष्य और सिविल प्रक्रिया के भारी-भरकम नियमों से बंधे नहीं हैं। यह एक त्वरित और कमखर्च उपचार व्यवस्था है।

क्योंकि इसमें कोई न्यायालय शुल्क नहीं देना पड़ता। कोई व्यक्ति या कोई मान्यताप्राप्त उपभोक्ता संघ आम उपभोक्ताओं की ओर से इस न्यायालय की शरण में जा सकता है। हाल के वर्षों में, आयोग ने कई बड़े महत्वपूर्ण एवं विविध मामलों पर निर्णय सुनाए हैं जो आम लोगों के लिए वरदान

उदाहरण के लिए, उत्पादों के उपभोक्ता, रेल और सिद्ध हुए हवाई यात्री, टेलीफोन ग्राहक बिजली उपभोक्ता, बीमादार, विभिन्न वस्तुओं के क्रेता, वाहनों का प्रयोग करने वाले और वे उपभोक्ता जो सेवाएं किराए पर लेते हैं, आदि। 

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